Bank Deposit Mystery: बैंक में पड़े हैं जमा कराए 443 करोड़, लेकिन दावा कोई नहीं कर रहा, आखिर क्यों

झांसी के सरकारी बैंकों में पड़े करोड़ों रुपये का कोई वारिस सामने नहीं आया है. जानिए किन कारणों से निष्क्रिय हो जाते हैं बैंक खाते, कैसे की जा सकती है इस रकम की क्लेमिंग और कहीं आपका या आपके परिवार का खाता तो नहीं इस सूची में शामिल? पढ़िए पूरी रिपोर्ट।

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Bank Deposit Mystery: बैंक में पड़े हैं जमा कराए 443 करोड़, लेकिन दावा कोई नहीं कर रहा, आखिर क्यों
Bank Deposit Mystery: बैंक में पड़े हैं जमा कराए 443 करोड़, लेकिन दावा कोई नहीं कर रहा, आखिर क्यों

झांसी के सरकारी बैंकों में जमा 443.19 करोड़ रुपये ने अब लोगों को हैरान कर दिया है. यह पूरी राशि उन 63,517 निष्क्रिय बैंक खातों में पड़ी है, जिनमें पिछले 10 वर्षों से कोई लेनदेन नहीं हुआ. झांसी के बैंक अधिकारी लगातार इन खातों के दावेदारों को ढूंढ़ने की कोशिश करते रहे, नोटिस भी जारी किए गए, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. अब बैंकिंग नियमों के तहत इन खातों की जमा राशि को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के डीफ खाते में ट्रांसफर कर दिया गया है.

10 साल से बंद पड़े खातों का रहस्य

बैंकिंग क्षेत्र में निष्क्रिय खातों की समस्या कोई नई नहीं है, लेकिन झांसी जैसे जनपद में इतनी बड़ी संख्या में ऐसे अकाउंट्स होना जरूर चौंकाता है. एलडीएम अजय शर्मा के मुताबिक, जिले के सरकारी बैंकों की 227 शाखाओं में करीब 10 लाख खातों का संचालन हो रहा है. इनमें से 63,517 खाते ऐसे हैं जिनमें पिछले 10 सालों से कोई ट्रांजेक्शन नहीं हुआ. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), पंजाब नेशनल बैंक (PNB) और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया जैसी प्रमुख शाखाओं में ऐसे खातों की संख्या सबसे अधिक है.

क्यों निष्क्रिय हो गए ये बैंक खाते?

बैंक अधिकारियों के अनुसार, इनमें से अधिकतर खाते उन लोगों द्वारा खोले गए थे जिन्होंने अपने परिजनों को इसकी जानकारी नहीं दी थी. कई मामलों में खाताधारकों की मृत्यु हो चुकी है और उत्तराधिकारियों को इन खातों के अस्तित्व की भनक तक नहीं है. कई अकाउंट्स में तो लाखों रुपये वर्षों से जमा हैं लेकिन किसी ने कभी क्लेम नहीं किया. इस स्थिति में बैंक के लिए इन्हें निष्क्रिय खाते घोषित करना मजबूरी बन गई थी.

डीफ खाते में ट्रांसफर की प्रक्रिया

बैंकिंग नियमों के अनुसार, यदि किसी खाते में 10 साल तक कोई लेनदेन नहीं होता है, तो उस खाते को निष्क्रिय (Inactive) घोषित कर दिया जाता है. इसके बाद भी यदि कोई गतिविधि नहीं होती, तो उस खाते में जमा रकम को रिजर्व बैंक के ‘Depositor Education and Awareness Fund’ (DEAF) में स्थानांतरित कर दिया जाता है. झांसी के इन निष्क्रिय खातों से भी कुल 443.19 करोड़ रुपये अब डीईएफ में भेज दिए गए हैं.

रकम अब भी की जा सकती है क्लेम

एलडीएम अजय शर्मा बताते हैं कि यह रकम अभी भी वापस ली जा सकती है. खाताधारक या उनके उत्तराधिकारी बैंक शाखा में जाकर आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करें तो बैंक उस रकम को वापस दिला सकता है. इसके लिए बैंक एक प्रक्रिया पूरी कराता है जिसमें खाताधारक की पहचान, मृत्यु प्रमाण पत्र (यदि खाताधारक की मृत्यु हो चुकी हो) और उत्तराधिकारी प्रमाणन की आवश्यकता होती है. सभी दस्तावेजों की पुष्टि के बाद बैंक RBI से अनुरोध कर वह रकम वापस मंगा सकता है और दावेदार को सौंप सकता है.

हर साल बढ़ रही है निष्क्रिय खातों में रकम

इस तरह के निष्क्रिय खातों में जमा राशि हर वित्तीय वर्ष में बढ़ती जा रही है. इसके पीछे मुख्य कारण लोगों की जागरूकता की कमी और बैंकिंग जानकारी का अभाव है. विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बुजुर्गों द्वारा खोले गए बैंक खाते, जिनकी जानकारी परिवारजनों को नहीं होती, लंबे समय तक इसी तरह निष्क्रिय पड़े रहते हैं. झांसी में यह आंकड़ा 443.19 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है और बैंक अधिकारी इसे लेकर गंभीर हैं.

तकनीकी सुधार और जनजागरूकता की जरूरत

बैंकों के सामने अब यह चुनौती है कि इस धन को दावेदारों तक कैसे पहुंचाया जाए. इसके लिए जरूरी है कि खाताधारकों को उनके अधिकारों की जानकारी दी जाए और परिवार में बैंकिंग से जुड़ी पारदर्शिता हो. साथ ही बैंकिंग सेक्टर में तकनीकी सुधार के जरिए ऐसे खातों की पहचान और ट्रैकिंग की प्रणाली को और प्रभावी बनाने की जरूरत है. इससे न केवल खाताधारकों को उनका पैसा वापस मिल सकेगा, बल्कि बैंकों की निष्क्रिय पूंजी भी सक्रिय हो सकेगी।

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