पाकिस्तान ताशकंद समझौता रद्द करेगा? भारत को हो सकता है बड़ा फायदा – जानिए कैसे

भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच अगर पाकिस्तान ताशकंद समझौते को निलंबित करता है, तो भारत को इससे सामरिक स्वतंत्रता, कश्मीर मुद्दे पर मजबूती और वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने का अवसर मिल सकता है। हालांकि, बढ़ती आतंकवादी गतिविधियों और सैन्य तनाव की संभावना भी बनी रहती है। यह स्थिति भारत के लिए एक बड़ा कूटनीतिक अवसर साबित हो सकती है।

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पाकिस्तान ताशकंद समझौता रद्द करेगा? भारत को हो सकता है बड़ा फायदा – जानिए कैसे
पाकिस्तान ताशकंद समझौता

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव फिर से चरम पर पहुंच गया है। भारत ने इस हमले के जवाब में कड़े कदम उठाए हैं, जिसमें सिंधु जल संधि को निलंबित करना और तीन पाकिस्तानी सैन्य राजनयिकों को देश छोड़ने का आदेश देना शामिल है। इसके जवाब में पाकिस्तान ने 1972 के शिमला समझौते को निलंबित कर दिया है और अब खबरें आ रही हैं कि वह 1966 के ताशकंद समझौते को भी रद्द कर सकता है। इस स्थिति में सवाल उठता है कि अगर पाकिस्तान ताशकंद समझौते को भी निलंबित करता है तो भारत को इससे फायदा होगा या नुकसान? चलिए इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं।

क्या है ताशकंद समझौता?

ताशकंद समझौता 10 जनवरी 1966 को भारत और पाकिस्तान के बीच उज्बेकिस्तान के ताशकंद में संपन्न हुआ था। इसका उद्देश्य 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध को समाप्त करना था। इस समझौते की मध्यस्थता सोवियत संघ के प्रीमियर अलेक्सी कोसिगिन ने कराई थी। भारत की ओर से प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान की ओर से राष्ट्रपति अयूब खान ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। यह समझौता दोनों देशों के बीच भविष्य में शांति बनाए रखने और विवादों का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से करने की प्रतिबद्धता का प्रतीक बना।

ताशकंद समझौते के प्रमुख बिंदु

ताशकंद समझौते के अनुसार दोनों देशों के सशस्त्र बलों को 5 अगस्त 1965 से पहले की स्थिति में लौटना था। युद्धविराम की शर्तों का पालन करने, एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने, विरोधी प्रचार रोकने और राजनयिक संबंधों को बहाल करने जैसे कई महत्वपूर्ण वादे इसमें किए गए थे। साथ ही, दोनों देशों ने व्यापार, संचार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान को पुनर्जीवित करने पर भी सहमति जताई थी। युद्धबंदियों की वापसी और अवैध अप्रवासियों पर चर्चा जारी रखने का भी प्रावधान इसमें शामिल था।

लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मौत और विवाद

ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर के अगले ही दिन, भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का ताशकंद में रहस्यमयी तरीके से निधन हो गया था। आधिकारिक रूप से उनकी मौत का कारण दिल का दौरा बताया गया, लेकिन पोस्टमॉर्टम न होने और परिवार द्वारा उठाए गए सवालों ने इसे एक गहरे विवाद का विषय बना दिया। इस समझौते को लेकर भारत में काफी आलोचना भी हुई थी, खासकर रणनीतिक रूप से अहम हाजी पीर दर्रे को वापस करने के निर्णय के चलते। महावीर त्यागी जैसे नेताओं ने इसे भारत की कूटनीतिक हार करार दिया था।

पाकिस्तान द्वारा ताशकंद समझौते के निलंबन की संभावना

पाकिस्तान ने हाल ही में शिमला समझौते को निलंबित कर दिखाया है कि वह बौखलाहट में आक्रामक कदम उठा सकता है। यदि पाकिस्तान ताशकंद समझौते को भी रद्द करता है, तो यह भारत-पाकिस्तान के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की बुनियाद को कमजोर करेगा। हालांकि, इससे भारत को कई अवसर भी मिल सकते हैं।

भारत के लिए संभावित लाभ

ताशकंद समझौते का निलंबन भारत को सामरिक स्वतंत्रता प्रदान कर सकता है, खासकर नियंत्रण रेखा-LoC पर। भारत अपनी सैन्य रणनीतियों को और आक्रामक बना सकता है तथा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर-PoK में आतंकी ठिकानों के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। इसके अलावा, कश्मीर मुद्दे पर भारत का दावा और मजबूत होगा, क्योंकि पाकिस्तान के कदम से उसकी शांति की प्रतिबद्धता पर सवाल उठेंगे।

आर्थिक मोर्चे पर भी भारत को बढ़त मिल सकती है। ताशकंद समझौते में व्यापारिक संबंध बहाली का जिक्र था; उसके निलंबन से भारत पाकिस्तान के साथ सभी व्यापारिक संबंध तोड़ सकता है, जिससे पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था पर और दबाव पड़ेगा।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की विश्वसनीयता को बड़ा झटका लग सकता है। ताशकंद समझौता सोवियत संघ के मध्यस्थता से हुआ था, जिससे रूस जैसे देशों के साथ पाकिस्तान के संबंध बिगड़ सकते हैं। भारत इस स्थिति का लाभ उठाकर पाकिस्तान को वैश्विक मंचों पर अलग-थलग कर सकता है।

दक्षिण एशिया में भारत की क्षेत्रीय नेतृत्वकारी भूमिका भी मजबूत होगी। अफगानिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों के साथ भारत के संबंध गहरे हो सकते हैं, जिससे क्षेत्र में भारत की कूटनीतिक स्थिति सुदृढ़ होगी।

संभावित खतरे

हालांकि, पाकिस्तान की बौखलाहट उसे आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ाने की ओर ले जा सकती है। इससे भारत को आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही, नियंत्रण रेखा पर सैन्य तनाव बढ़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

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