
देश में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स-Electric Vehicles का चलन तेजी से बढ़ रहा है। खासतौर पर इलेक्ट्रिक स्कूटरों की डिमांड में बड़ा उछाल देखा जा रहा है। इसी के चलते अब लोग पुराने पेट्रोल स्कूटरों को इलेक्ट्रिक में कन्वर्ट कराने की दिशा में भी बढ़ रहे हैं। दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों में कई स्टार्टअप्स इस काम में जुटे हुए हैं जो पेट्रोल स्कूटरों को इलेक्ट्रिक स्कूटरों में बदलने की सुविधा दे रहे हैं। यह प्रक्रिया रेट्रोफिटिंग-Retrofitting के नाम से जानी जाती है। हालांकि इस जुगाड़ के फायदे के साथ कुछ नुकसान भी हैं, जिन्हें जानना जरूरी है।
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पेट्रोल स्कूटर को इलेक्ट्रिक में कन्वर्ट कराना एक इनोवेटिव और पर्यावरण के अनुकूल विचार जरूर है, लेकिन इसमें तकनीकी पेचिदगियां और व्यावहारिक समस्याएं भी जुड़ी होती हैं। यदि कोई ग्राहक सीमित बजट में अपने पुराने स्कूटर को दोबारा उपयोग में लाना चाहता है और उसके पास चार्जिंग की सुविधा उपलब्ध है, तो यह एक अच्छा विकल्प हो सकता है। वहीं दूसरी ओर, अगर आप लंबी अवधि के लिए भरोसेमंद और वॉरंटी युक्त इलेक्ट्रिक स्कूटर चाहते हैं, तो नया स्कूटर खरीदना ज्यादा फायदेमंद रहेगा।
क्या है रेट्रोफिटिंग और कैसे होता है स्कूटर कन्वर्जन
रेट्रोफिटिंग वह तकनीकी प्रक्रिया है जिसके तहत किसी पुराने पेट्रोल स्कूटर से इंजन, एग्जॉस्ट, क्लच और फ्यूल टैंक जैसे हिस्से हटाकर उनकी जगह बैटरी, इलेक्ट्रिक मोटर और बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम (Battery Management System) लगाए जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया की शुरुआती लागत करीब ₹25,000 से शुरू होती है, लेकिन बैटरी की क्षमता और क्वालिटी के अनुसार यह खर्च ₹50,000 या उससे भी अधिक हो सकता है। उदाहरण के तौर पर, यदि कोई ग्राहक अपनी होंडा एक्टिवा को इलेक्ट्रिक में बदलवाना चाहता है, तो उसे लगभग ₹50,000 तक का खर्च वहन करना पड़ सकता है।
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रेट्रोफिटिंग के फायदे
रेट्रोफिटिंग का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह फ्यूल पर होने वाले खर्च को बहुत कम कर देता है। पेट्रोल की तुलना में बिजली की कीमत बहुत कम होती है और एक बार चार्ज में स्कूटर को 50 से 80 किलोमीटर तक चलाया जा सकता है, हालांकि यह बैटरी की क्षमता पर निर्भर करता है।
इलेक्ट्रिक मोटर में कम मूविंग पार्ट्स होते हैं, जिससे इंजन ऑयल, गियर ऑयल, क्लच जैसे पार्ट्स की जरूरत खत्म हो जाती है। इससे मेंटेनेंस कॉस्ट भी कम हो जाता है।
इसके अलावा, इलेक्ट्रिक स्कूटर से कोई प्रदूषण नहीं होता। यह रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy को बढ़ावा देता है और पर्यावरण के लिए भी बेहतर है। कुछ राज्यों में इलेक्ट्रिक वाहनों पर सब्सिडी, रोड टैक्स में छूट और रजिस्ट्रेशन में रियायत मिलती है।
पुराने स्कूटर को दोबारा इस्तेमाल करने से स्क्रैपिंग की जरूरत नहीं पड़ती और यह भी एक पर्यावरण के अनुकूल कदम है।
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रेट्रोफिटिंग के नुकसान
जहां एक ओर रेट्रोफिटिंग पैसे की बचत का विकल्प दिखता है, वहीं इसके कुछ गंभीर नुकसान भी हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सबसे बड़ा नुकसान यह है कि कन्वर्जन के बाद स्कूटर की परफॉर्मेंस नई इलेक्ट्रिक स्कूटर जितनी नहीं होती।
कई बार सस्ती बैटरियों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे एक बार चार्ज में रेंज सीमित हो जाती है। आम तौर पर यह रेंज 50 से 80 किलोमीटर के बीच होती है, जो कि बाजार में मौजूद बजट इलेक्ट्रिक स्कूटरों से कम या बराबर है।
चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी भी एक बड़ी समस्या है। यदि आपके इलाके में चार्जिंग स्टेशन नहीं हैं, तो आपको घर पर स्कूटर चार्ज करना पड़ेगा जिसमें 4 से 6 घंटे या उससे ज्यादा वक्त लग सकता है।
इसके अलावा, जब स्कूटर मॉडिफाई किया जाता है तो उसकी ओरिजिनल वारंटी खत्म हो जाती है और अगर कन्वर्जन किसी अप्रूव्ड वर्कशॉप से नहीं किया गया हो, तो सुरक्षा से समझौता हो सकता है।
कई बार RTO से दोबारा अप्रूवल की जरूरत पड़ती है। बिना अप्रूवल के चलाए गए कन्वर्टेड स्कूटर कानूनी रूप से अवैध माने जा सकते हैं और इस पर चालान कट सकता है।
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इतना खर्च करने के बाद भी आपको एक पुराना स्कूटर ही मिलेगा, जो परफॉर्मेंस और लुक्स में किसी नए इलेक्ट्रिक स्कूटर से पीछे रह जाएगा। ऐसे में थोड़ी सी और लागत जोड़कर नया स्कूटर खरीदना अधिक समझदारी भरा हो सकता है।