
बांग्लादेश-म्यांमार रखाइन वार (Bangladesh Myanmar Rakhine War) ने दक्षिण एशिया में हलचल मचा दी है। मई 2024 में बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के एक बयान ने इस खतरे की आहट दी थी। हसीना ने चेताया था कि बांग्लादेश और म्यांमार के बीच एक नया ईसाई देश बनाने की साजिश हो रही है। उन्होंने कहा था कि बांग्लादेशी क्षेत्र में विदेशी एयरबेस बनाने की मांग की गई थी, जिसे उन्होंने सख्ती से खारिज कर दिया। लेकिन उनके बयान के महज चार महीने बाद ही हालात ने करवट ली और शेख हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा।
बांग्लादेश-म्यांमार रखाइन वार (Bangladesh Myanmar Rakhine War) केवल क्षेत्रीय संकट नहीं है, बल्कि यह पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए खतरा बन सकता है। भारत को इस मामले पर पैनी नजर रखनी होगी और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए रणनीतिक विकल्पों को तैयार रखना होगा।
अमेरिका की अगुवाई में शुरू हुआ ‘ग्रेट गेम’
बंगाल की खाड़ी में अब वही ग्रेट गेम शुरू हो चुका है जिसकी आशंका शेख हसीना ने जताई थी। इस योजना में अमेरिका प्रमुख भूमिका निभा रहा है। बांग्लादेश की नई सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस अमेरिकी नीतियों के समर्थक माने जा रहे हैं। अमेरिका के साथ अब बांग्लादेश आर्मी भी इस खेल का सक्रिय हिस्सा बन चुकी है। इस योजना में अन्य तीन पुराने प्रतिद्वंद्वी भी अब अमेरिका के नेतृत्व में एक साथ आ गए हैं।
भारत के पड़ोस में बन रहा नया देश
नई योजना के अनुसार, म्यांमार के रखाइन (Rakhine) और चिन (Chin) राज्यों को मिलाकर एक नया स्वतंत्र देश बनाने की तैयारी है। बांग्लादेश की सेना की 10वीं, 17वीं और 24वीं डिवीजन को इस सैन्य अभियान में शामिल किया गया है। कॉक्स बाजार में ड्रोन बेस और टेकनाफ के सिलखाली इलाके में आर्टिलरी बेस तैयार किया जा रहा है। नाफ नदी के बाद 11,000 हेक्टेयर में फैला एक अमेरिकी सप्लाई और लॉजिस्टिक्स डिपो भी स्थापित किया गया है, जो इस योजना को समर्थन देगा।
चीन-रूस से निपटने की रणनीति
म्यांमार की सैन्य जुंटा के चीन और रूस से मजबूत संबंध हैं। चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) म्यांमार से होकर गुजरता है और रूस ने म्यांमार को अत्याधुनिक हथियार भी दिए हैं। इसीलिए बांग्लादेश के नए नेतृत्व ने चीन और रूस को इस अभियान की योजना समझाने की पहल की है। हाल ही में प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस का चीन दौरा और बांग्लादेश आर्मी चीफ का रूस दौरा इसी रणनीति का हिस्सा है।
अमेरिका ने बढ़ाई गतिविधियां
ढाका में हाल ही में अमेरिकी विदेश विभाग के वरिष्ठ अधिकारी पहुंचे थे। उनके साथ म्यांमार के विद्रोही गुटों अराकान आर्मी और चिन नेशनल फ्रंट के प्रतिनिधियों ने भी गुप्त बैठकें कीं। इसके बाद बांग्लादेश के फोर्सेज इंटेलिजेंस के प्रमुख मेजर जनरल जहांगीर आलम वॉशिंगटन रवाना हुए, जहां उन्होंने CIA अधिकारियों को रखाइन योजना पर अपडेट दिया।
भारत के लिए खतरे की घंटी
म्यांमार का चिन स्टेट भारत के मिजोरम और मणिपुर राज्यों से सटा है। अगर यहां एक नया देश बनता है तो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में अस्थिरता फैल सकती है। वर्तमान में भारत और म्यांमार के रिश्ते अच्छे हैं, लेकिन नई परिस्थिति में भारत के लिए चुनौती बढ़ सकती है। इसके अलावा, म्यांमार के सित्तवे पोर्ट के जरिए पूर्वोत्तर भारत तक सीधी पहुंच भारत के लिए एक रणनीतिक विकल्प बना हुआ है, जिसे खतरे में नहीं डाला जा सकता।
विशेषज्ञों की राय
डिफेंस एनालिस्ट लेफ्टिनेंट कर्नल (रिटायर्ड) जेएस सोढ़ी के अनुसार, भारत को इस मामले में सीधा हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, लेकिन सतर्क रहना बेहद जरूरी है। उन्होंने चेताया कि म्यांमार जैसी स्थिति से भारत को सबक लेना चाहिए, जहां ‘अनेकता में एकता’ के सिद्धांत के टूटने से गृहयुद्ध की स्थिति पैदा हो गई है।
बांग्लादेश की दोहरी नीति
हालांकि अमेरिका के साथ मोहम्मद यूनुस का झुकाव स्पष्ट है, लेकिन चीन को साधने की कोशिश भी जारी है। हाल ही में यूनुस ने चीन यात्रा के दौरान भारत के ‘चिकन नेक’ पर बयान दिया था, जो उनकी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।