Vat Savitri Vrat 2025: मई में इस दिन रखा जाएगा व्रत – जानें शुभ मुहूर्त और नियम

पति की दीर्घायु और निरोगता की कामना से किया जाने वाला Vat Savitri Vrat इस साल 29 मई को मनाया जाएगा। जानिए इस पावन पर्व की पौराणिक कथा, पूजा विधि और इसका आध्यात्मिक महत्व, जिससे जुड़ी हैं भारतीय स्त्री की श्रद्धा और निष्ठा की गाथाएं।

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Vat Savitri Vrat 2025: मई में इस दिन रखा जाएगा व्रत – जानें शुभ मुहूर्त और नियम
Vat Savitri Vrat 2025: मई में इस दिन रखा जाएगा व्रत – जानें शुभ मुहूर्त और नियम

Vat Savitri Vrat : अखंड सौभाग्य और पति की दीर्घायु के लिए सुहागिनों द्वारा किया जाने वाला वट सावित्री व्रत इस बार मई महीने में रखा जाएगा। यह व्रत हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र और महत्व का पर्व माना जाता है, जिसे विशेष रूप से उत्तर भारत और महाराष्ट्र की महिलाएं बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से करती हैं। यह व्रत हर वर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं और देवी सावित्री तथा सत्यवान की कथा सुनती हैं।

ज्येष्ठ अमावस्या को मनाया जाता है Vat Savitri Vrat

हिन्दू पंचांग के अनुसार, Vat Savitri Vrat हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व मई माह में मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लिए थे। इसी कारण यह व्रत पति की दीर्घायु, आरोग्यता और अखंड सौभाग्य की कामना से किया जाता है। महिलाएं इस दिन निर्जला उपवास रखती हैं और पूरी श्रद्धा से व्रत की विधि-विधान के अनुसार पूजा-अर्चना करती हैं।

व्रत की धार्मिक महत्ता और पौराणिक कथा

Vat Savitri Vrat से जुड़ी कथा महाभारत के वनपर्व में वर्णित है। इसके अनुसार, सावित्री नामक स्त्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से तप, भक्ति और बुद्धिमत्ता के बल पर वापस लिए थे। सावित्री की इस निष्ठा और समर्पण ने इस व्रत को अत्यधिक पुण्यदायी बना दिया। तभी से यह व्रत सुहागिनों के बीच विशेष लोकप्रियता प्राप्त कर चुका है। माना जाता है कि इस व्रत को पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करने से पति की उम्र लंबी होती है और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।

बरगद के पेड़ की होती है विशेष पूजा

Vat Savitri Vrat के दिन महिलाएं वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। यह पेड़ हिन्दू धर्म में त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं वट वृक्ष के चारों ओर कच्चा धागा लपेटती हैं और परिक्रमा करती हैं। इसके बाद व्रत कथा का श्रवण किया जाता है जिसमें सावित्री और सत्यवान की जीवनगाथा सुनाई जाती है। पूजा के अंत में पति के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है।

निर्जला उपवास का विशेष महत्व

Vat Savitri Vrat में निर्जला उपवास का विशेष महत्व होता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं और पूरे दिन बिना जल ग्रहण किए पूजा करती हैं। इस कठिन व्रत को करने वाली महिलाएं अपनी आस्था और प्रेम का प्रमाण देती हैं। इस उपवास को करने से आत्मबल और संयम की परीक्षा होती है तथा इसका पुण्य फल कई जन्मों तक साथ रहता है।

बदलते दौर में भी बना हुआ है व्रत का महत्व

आज के आधुनिक युग में भी Vat Savitri Vrat की परंपरा महिलाओं के बीच उतनी ही आस्था और श्रद्धा से निभाई जा रही है जैसे पहले निभाई जाती थी। बदलती जीवनशैली और भागदौड़ भरे समय में भी सुहागिनें इस दिन की पवित्रता और महत्व को समझते हुए पूरे विधि-विधान से व्रत रखती हैं। सोशल मीडिया पर भी इस पर्व की छवि साफ नजर आती है, जहां महिलाएं अपने व्रत की तस्वीरें और अनुभव साझा करती हैं।

यह पर्व भारतीय संस्कृति की जीवंत परंपरा का उदाहरण

Vat Savitri Vrat न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की जीवंत परंपराओं और स्त्री के समर्पण भाव का प्रतीक भी है। यह व्रत यह भी दर्शाता है कि भारतीय समाज में स्त्रियों की भूमिका कितनी सशक्त और सम्माननीय रही है। सावित्री की तरह हर नारी अपने परिवार की रक्षा और पति की लंबी उम्र के लिए तत्पर रहती है।

कब रखा जाएगा Vat Savitri Vrat 2025 में?

Vat Savitri Vrat इस वर्ष 29 मई 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन ज्येष्ठ अमावस्या रहेगी और महिलाएं प्रातःकाल स्नान करके व्रत का संकल्प लेंगी। दिनभर व्रत रखने के बाद वे शाम को पूजा कर व्रत को पूर्ण करेंगी। इस दिन वट वृक्ष की पूजा विशेष रूप से शुभ मानी जाती है और इसकी परिक्रमा करने से पापों का नाश होता है।

अखंड सौभाग्य और समर्पण का पर्व

Vat Savitri Vrat केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय स्त्री की भावनाओं, विश्वास और समर्पण का प्रतीक है। यह पर्व भारतीय वैवाहिक जीवन की महत्ता को रेखांकित करता है और दांपत्य जीवन की मधुरता को बनाए रखने का माध्यम भी बनता है। इस पर्व का महत्व सदियों से चला आ रहा है और आने वाले युगों में भी इसकी परंपरा जीवित रहेगी।

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