
भारत में मदरसे पारंपरिक इस्लामी शिक्षण संस्थान हैं, जहां मुस्लिम समुदाय के बच्चों को कुरान, हदीस, अरबी भाषा और इस्लामी कानून की तालीम दी जाती है। यहां पढ़ाने वाले शिक्षकों को मौलाना कहा जाता है, जो न सिर्फ धार्मिक ज्ञान बांटते हैं बल्कि सामाजिक और नैतिक मूल्यों को भी सुदृढ़ करते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि जिन मौलानाओं पर इतनी अहम ज़िम्मेदारी होती है, उन्हें इसके बदले कितनी सैलरी-Salary मिलती है? यह जानना बेहद जरूरी है, क्योंकि उनके जीवन की आर्थिक हकीकत आमतौर पर नजरों से ओझल रहती है।
सरकारी मदरसों में मौलानाओं की सैलरी: राज्य सरकारों की सीमित मदद
भारत के कुछ राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम अपने क्षेत्र के मान्यता प्राप्त मदरसों को सरकारी अनुदान के अंतर्गत आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं। इन सरकारी मदरसों में नियोजित मौलानाओं को ₹6,000 से ₹20,000 तक मासिक वेतन मिलता है। यह वेतन मुख्य रूप से मौलाना की योग्यता, अनुभव और मदरसे की श्रेणी पर निर्भर करता है।
उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड के तहत आने वाले संस्थानों में मौलानाओं को ग्रेड के अनुसार ₹12,000 से ₹20,000 तक की सैलरी दी जाती है। वहीं, पश्चिम बंगाल में West Bengal Board of Madrasah Education द्वारा संचालित मदरसों में शिक्षकों को ₹10,000 से ₹18,000 तक वेतन मिलता है। हालांकि, यह सैलरी अभी भी राष्ट्रीय औसत शिक्षक वेतन से काफी कम है।
निजी मदरसों में मौलानाओं की हालत: श्रद्धा से अधिक आर्थिक हकीकत हावी
भारत में हजारों प्राइवेट मदरसे हैं, जो स्थानीय समुदाय, मस्जिद ट्रस्ट या व्यक्तिगत संस्थाओं द्वारा संचालित होते हैं। इन मदरसों में मौलानाओं को कोई निश्चित वेतन नहीं मिलता। अधिकतर मौलानाओं की आय दान, सदका और धार्मिक कार्यों (जैसे निकाह, जनाज़ा, दुआ आदि) से मिलने वाले पारिश्रमिक पर निर्भर होती है।
ऐसे मौलाना महीने में औसतन ₹3,000 से ₹8,000 तक की ही आमदनी कर पाते हैं। कई बार ये राशियां भी नियमित नहीं होतीं, जिससे उनके जीवन की वित्तीय स्थिरता पर सवाल खड़े होते हैं। बहुत से मौलाना अपने परिवार का खर्च चलाने के लिए ट्यूशन, अनुवाद कार्य, या फिर स्थानीय स्तर पर अन्य धार्मिक सेवाएं प्रदान करते हैं।
धार्मिक सेवा बनाम आर्थिक यथार्थ
मौलाना बनना एक धार्मिक Calling माना जाता है, जिसमें सेवा, शिक्षा और समाज का मार्गदर्शन शामिल होता है। लेकिन आधुनिक भारत में यह सवाल भी अहम हो गया है कि क्या धार्मिक शिक्षकों को पर्याप्त आर्थिक सम्मान मिल रहा है? बहुत से मौलाना, उच्च शिक्षित होते हुए भी, केवल धर्म के प्रति समर्पण के कारण इस क्षेत्र में बने रहते हैं। लेकिन उनके लिए यह स्थिति धीरे-धीरे चुनौतीपूर्ण होती जा रही है।
कुछ राज्यों में सरकारें नई स्कीमें और फंडिंग मॉडल लाने की कोशिश कर रही हैं ताकि मदरसा शिक्षक भी एक स्थिर और सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर सकें। साथ ही, मौलानाओं को भी अब अपने आर्थिक अधिकारों को लेकर अधिक सजग होने की आवश्यकता है।