
आज के समाज में जहां परिवारों का आकार घट रहा है और छोटे परिवारों की संख्या बढ़ रही है, वहीं पैतृक संपत्ति से जुड़े विवाद भी तेजी से सामने आ रहे हैं। अक्सर देखा जाता है कि परिवार के सदस्य, खासकर बेटा या बेटी, पैतृक संपत्ति में अपने हिस्से से वंचित रह जाते हैं। ऐसे में कानूनी सहायता लेने का रास्ता खुलता है, लेकिन क्या किया जाए जब दादा, पिता, या भाई आपको आपकी हिस्सेदारी नहीं देते? इस लेख में हम जानेंगे कि पैतृक संपत्ति पर आपका अधिकार कैसे बचा सकते हैं और अगर आपके साथ ऐसा होता है तो आप क्या कदम उठा सकते हैं।
पैतृक संपत्ति क्या होती है?
पैतृक संपत्ति वह संपत्ति होती है जिसे एक व्यक्ति अपने पूर्वजों से जन्म से प्राप्त करता है। यह संपत्ति स्व-अर्जित संपत्ति से अलग होती है। स्व-अर्जित संपत्ति वह होती है जो किसी व्यक्ति ने अपनी मेहनत से कमाई होती है, जबकि पैतृक संपत्ति वह है जो परिवार के पूर्वजों से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आती है। अगर किसी व्यक्ति के दादा या पिता की ओर से कोई संपत्ति अविभाजित रूप में चली आ रही है, तो वह पैतृक संपत्ति मानी जाती है और इसमें उस व्यक्ति का स्वाभाविक अधिकार होता है।
पैतृक संपत्ति में अधिकार
पैतृक संपत्ति में अधिकार जन्म से ही मिल जाता है, लेकिन यह तभी मान्य होता है जब संपत्ति चार पीढ़ियों तक अविभाजित रही हो। इस संपत्ति में बेटा और बेटी दोनों का बराबर का अधिकार होता है। यह अधिकार हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के अनुसार तय होता है, जिसके तहत बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में बेटों के समान अधिकार दिया गया है। इसके बाद, अगर संपत्ति को बेचना या विभाजित करना हो तो सभी हिस्सेदारों की सहमति जरूरी होती है।
अगर संपत्ति में हिस्सा न मिले तो क्या करें?
अगर आपको पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया जा रहा है तो सबसे पहले आपको अपने परिवार के अन्य सदस्यों को कानूनी नोटिस भेजना चाहिए। नोटिस भेजने के बाद भी अगर समाधान नहीं निकलता है, तो आप सिविल कोर्ट में मुकदमा दर्ज कर सकते हैं। कोर्ट से आप यह भी मांग सकते हैं कि संपत्ति की बिक्री पर रोक लगाई जाए, ताकि आपके हिस्से को दबाया न जा सके।
अगर मामला अदालत में विचाराधीन हो और संपत्ति बेच दी जाए, तो आप खरीदार को भी केस में शामिल कर सकते हैं और अपना दावा बरकरार रख सकते हैं। यह एक महत्वपूर्ण कदम है क्योंकि इससे आपका अधिकार सुरक्षित रहता है और संपत्ति की बिक्री पर कानूनी नियंत्रण बना रहता है।
बेटियों का पैतृक संपत्ति में अधिकार
हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 ने बेटियों के अधिकारों में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। इस संशोधन के तहत बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में उतना ही अधिकार दिया गया है जितना कि बेटों को। पहले बेटियों को परिवार की संपत्ति में उतना अधिकार नहीं था, लेकिन इस संशोधन के बाद से बेटियां भी अपनी पैतृक संपत्ति में बराबर की हिस्सेदार बन गई हैं। इसका मतलब यह है कि अब बेटियां भी संपत्ति में अपने हिस्से का दावा कर सकती हैं, चाहे उनकी शादी हो चुकी हो या नहीं।
इस बदलाव से बेटियों को समान उत्तराधिकारी का दर्जा मिला है, जो उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार और कानूनी अधिकारों को सशक्त बनाता है। अगर किसी बेटी को उसके हिस्से से वंचित किया जाता है तो वह भी कानूनी रास्ता अपनाकर अपना अधिकार प्राप्त कर सकती है।
अपनी संपत्ति के अधिकारों को जानें
पैतृक संपत्ति के मामलों में कई बार लोग अपनी कानूनी स्थिति को समझ नहीं पाते और इस वजह से उनका अधिकार छिन जाता है। अगर आपको लगता है कि आपके साथ भी ऐसा हो रहा है तो सबसे पहले अपने अधिकारों के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करें। आपको यह समझना होगा कि अगर आपके पास कानूनी अधिकार है, तो आप उसे सुरक्षित रखने के लिए सही कदम उठा सकते हैं। अपने अधिकारों की जानकारी से वंचित रहना न केवल अन्यायपूर्ण है बल्कि यह भविष्य में बड़े नुकसान का कारण भी बन सकता है।
समझदारी से और कानूनी मार्ग से संपत्ति से जुड़ी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है, लेकिन अगर ऐसा न हो, तो न्याय का रास्ता अपनाना एक सही कदम होगा।