
गर्मी के मौसम में कूलर की मांग तेजी से बढ़ती है और ऐसे में बाजार में मौजूद प्लास्टिक कूलर और लोहे के कूलर को लेकर लोग अक्सर भ्रमित रहते हैं कि कौन-सा विकल्प बेहतर है। आज के समय में जहां एक ओर प्लास्टिक बॉडी कूलर शहरों में लोगों की पहली पसंद बनते जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर लोहे के कूलर अब भी ग्रामीण इलाकों में अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं। आइए जानते हैं इन दोनों प्रकार के कूलरों के फायदे और नुकसान, ताकि आप अपनी ज़रूरत के मुताबिक सही फैसला ले सकें।
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स्टाइलिश और हल्के होते हैं प्लास्टिक बॉडी वाले कूलर
आजकल के शहरों में रहने वाले उपभोक्ता प्लास्टिक कूलर को अधिक प्राथमिकता देते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह इसका मॉडर्न और आकर्षक डिज़ाइन होता है, जो आज के इंटीरियर के अनुसार फिट बैठता है। इसके अलावा प्लास्टिक बॉडी का सबसे बड़ा फायदा इसका हल्का वजन है, जिससे इसे एक कमरे से दूसरे कमरे में आसानी से ले जाया जा सकता है।
इन कूलरों की एक और खासियत यह है कि इन पर जंग (Rust) नहीं लगता, जिससे इनकी उम्र ज्यादा होती है और रखरखाव में भी अधिक मेहनत नहीं लगती। प्लास्टिक कूलर आमतौर पर कम आवाज करते हैं, जिससे रात के समय भी बिना किसी शोर के आरामदायक नींद ली जा सकती है। साथ ही इनकी सफाई भी बेहद आसान होती है।
लोहे के कूलर: ज्यादा ठंडी हवा लेकिन ज्यादा मेंटेनेंस
दूसरी ओर अगर बात करें लोहे के कूलर की, तो ये उन लोगों के लिए बेहतर विकल्प हैं जिन्हें कूलिंग पावर अधिक चाहिए। ग्रामीण इलाकों में इनकी मांग अधिक होती है क्योंकि ये गर्मी में तेज और ज्यादा समय तक ठंडी हवा देते हैं। लोहे के कूलर की फैन स्पीड आमतौर पर प्लास्टिक कूलरों से ज्यादा होती है और ये मजबूत भी होते हैं, जिससे इनका जीवनकाल भी लंबा होता है।
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लेकिन जहां फायदे हैं, वहां कुछ कमियां भी हैं। लोहे के कूलरों का सबसे बड़ा नुकसान है जंग लगना, खासकर जब इन्हें लंबे समय तक इस्तेमाल किया जाए या बारिश के मौसम में ठीक से ढका न जाए। इसके अलावा इनका वजन अधिक होता है, जिससे इन्हें एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट करना मुश्किल हो सकता है। साथ ही लोहे के कूलर बिजली की खपत भी ज्यादा करते हैं, जिससे बिजली बिल में फर्क साफ नजर आता है।
शहरी और ग्रामीण पसंद में फर्क
प्लास्टिक कूलर जहां शहरी जीवनशैली के लिए अनुकूल हैं, वहीं लोहे के कूलर अधिकतर ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में पसंद किए जाते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में कूलिंग क्षमता और मजबूती को ज्यादा महत्व दिया जाता है, जबकि शहरों में पोर्टेबिलिटी और डिज़ाइन प्राथमिकता होती है।
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रखरखाव और खर्च की तुलना
अगर खर्च की बात करें तो प्लास्टिक कूलर कम बिजली खर्च करते हैं, जिससे इनका संचालन किफायती होता है। इसके विपरीत, लोहे के कूलरों में बिजली की खपत अधिक होती है और जंग के कारण समय-समय पर रिपेयरिंग की जरूरत भी पड़ती है।
निष्कर्ष: जरूरत के अनुसार करें चुनाव
अगर आप एक ऐसा कूलर चाहते हैं जो देखने में स्टाइलिश हो, हल्का हो और जिसे आसानी से कहीं भी ले जाया जा सके, तो प्लास्टिक कूलर आपके लिए बेहतर विकल्प हैं। वहीं यदि आपकी प्राथमिकता तेज और ज्यादा कूलिंग है, और आप भारी वजन तथा बिजली खपत को लेकर समझौता कर सकते हैं, तो लोहे के कूलर ज्यादा कारगर साबित हो सकते हैं।
हर कूलर की अपनी खूबियां और कमियां होती हैं, इसलिए चुनाव करते वक्त यह देखना जरूरी है कि आपकी जरूरत और उपयोग की जगह क्या है।