
भगवान परशुराम जयंती को लेकर लंबे समय से उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक अवकाश की मांग उठती रही है, लेकिन इस वर्ष भी यह मांग पूरी नहीं हुई। ब्राह्मण समाज और विभिन्न सामाजिक संगठनों के लिए यह खबर निश्चित ही निराशाजनक है, क्योंकि भगवान परशुराम को हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है और उनका जन्मदिन ‘अक्षय तृतीया’ के दिन बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
केंद्रीय मंत्री से प्रतिनिधिमंडल की पहल
इस मुद्दे को गंभीरता से उठाने के लिए भाजपा कार्यकर्ता विजय द्विवेदी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में केंद्रीय उद्योग एवं वाणिज्य राज्य मंत्री जितिन प्रसाद से दिल्ली में मुलाकात की। प्रतिनिधिमंडल ने न केवल भगवान परशुराम जयंती पर अवकाश की मांग रखी, बल्कि प्रयागराज में श्यामा प्रसाद मुखर्जी सेतु के पास भगवान परशुराम की आदमकद प्रतिमा लगाने का प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया। यह पहल समाज के भावनात्मक जुड़ाव और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की दिशा में महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
दूसरे राज्यों में अवकाश की स्थिति
जहां उत्तर प्रदेश सरकार ने इस वर्ष भी भगवान परशुराम जयंती पर कोई राजकीय अवकाश घोषित नहीं किया, वहीं पंजाब, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों ने इस अवसर पर सार्वजनिक अवकाश घोषित कर समाज के विश्वास को मजबूती दी है। पंजाब में इस दिन सभी सरकारी कार्यालय, स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय बंद रहते हैं। हालांकि, आवश्यक सेवाएं जैसे अस्पताल, एम्बुलेंस सेवा और बिजली-पानी की आपूर्ति पूर्ववत सुचारु रूप से जारी रहती हैं।
भगवान परशुराम का धार्मिक महत्व और उत्सव की परंपरा
भगवान परशुराम का जन्मदिन विशेष रूप से ब्राह्मण समाज के लिए एक पवित्र और श्रद्धा से भरा अवसर होता है। इस दिन पूरे देश में धार्मिक आयोजनों की बहार होती है – पूजन, भंडारे, शोभा यात्राएं और सामूहिक पाठ का आयोजन होता है। परशुराम जयंती, केवल एक धार्मिक दिन नहीं बल्कि सांस्कृतिक गर्व और सामुदायिक एकता का प्रतीक बन चुकी है।
उत्तर प्रदेश में सरकारी निर्णय और समाज की प्रतिक्रिया
बार-बार उठाई गई मांगों के बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा परशुराम जयंती पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा न करना, समाज के एक बड़े हिस्से में असंतोष का कारण बन रहा है। खासकर ब्राह्मण समुदाय इसे अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनादर के रूप में देख रहा है। हालांकि, सरकार की ओर से अभी तक कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन जिस तरह से समाज इस विषय पर संगठित हो रहा है, उससे यह मुद्दा भविष्य में और भी अधिक मुखर हो सकता है।